
कवर्धा-
जिले में महाशिवरात्रि का पावन पर्व धूमधाम से मनाया गया। सभी प्रमुख शिवालयों में भक्तों की भारी भीड़ मौजूद रही। छत्तीसगढ़ का खजुराहो के नाम से प्रसिद्व भोरमदेव शिवमंदिर में दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहा। सुबह से दर्शन-पूजन के लिए लोग मंदिर पहुंच गए थे। सभी लाईन में लंबे समय तक इंतजार कर भगवान भोलेनाथ के दर्शन किए। इसके साथ ही नगर के पंचमुखी बुढ़ामहादेव,डोंगरिया के जालेश्वर महादेव मंदिर में भी भक्तों की भीड़ दर्शन के लिए पहुंची थी।
महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ व माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन प्रमुख शिव मंदिरों में दर्शन के लिए भक्ता पहुंचते है। खासकर जिले के सुप्रसिद्व भोरमदेव शिव मंदिर पूरे प्रदेश में अपने आप में अनूठा व दुर्लभ शिव मंदिर है,एक हजार साल पुराना मंदिर आज भी अपने वैभव,सुंदरता,कलाकारी के लिए जाना व पहचाना जाता है। मंदिर में विराजमान शिवलिंग की अलग ही महिमा है,यहां आने वाले श्रद्वालु सच्चे मन से जो भी मांगते हैं,उनकी हर इच्छा पूरी होती है। यही वजह है कि साल दर साल भोरमदेव में भक्तों की भीड़ बढ़ते जा रही है। साल भर यहां श्रद्वालुओं का आना होता रहा है। आने वाले समय में भोरमदेव मंदिर परिसर का और बेहतर तरीके से विकास कार्य कराने की कार्ययोजना बनाकर भेजी गई है। जिसकी मंजूरी के बाद लोगों को और भी अच्छी सुविधा मिल सकेगी।
भोरमदेव शिव मंदिर के पुजारी पंडित आशीष पाठक ने बताया कि महाशिवरात्रि पर्व का बड़ा ही विशेष महत्व है। सुबह से मंदिर में दिव्य अभिषेक किया गया है,दूध,घी,दही,मधुरस से अभिषेक हुआ है। मंदिर की विशेष साज सज्जा किया गया है,बड़े आस्था व विश्वास के साथ दूर-दूर से पहुंचकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने किए पहुंचे है। इस दिन महादेव पर जलअर्पण करने वाले,बेलपत्र चढ़ाने वाले को विशेष फल मिलता है। उनकी हर मनोकामना भगवान भोलेनाथ पूरी करते हैं। मंदिर में विशेष रूप से भक्तों को अभिषेक भी कराया गया है। शाम को भस्म आरती कर
कवर्धा में महाशिवरात्रि के अवसर पर सांसद संतोष पांडेय ने भोरमदेव शिव मंदिर में दर्शन पूजन किए। सपरिवार वे मंदिर पहुंचे,वहां पूजा कर प्रदेशवासियों की खुशहाली की कामना की। सांसद ने बताया कि भोरमदेव प्रदेशवासियों के लिए आस्था का केन्द्र है। इसे केन्द्र सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा संचालित प्रसाद योजना में शामिल करने का प्रस्ताव भेजा गया है। डोंगरगढ़ को शामिल किया गया है। माता के बाद पिता के मंदिर परिसर को सजाने संवारने की बारी है।
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