
छग का खजुराहो एक हजार साल पुराना भोरमदेव शिव मंदिर
कवर्धा-
जिले के ऐतेहासिक पुरातत्व महत्व के स्थल भोरमदेव मंदिर की खुबसूरती देखते ही बनती है । एक हजार साल पुराना मंदिर आज भी मजबूती के साथ खड़ा है । इसकी तुलना खजुराहो के मंदिर से की जाती है। मंदिर के दीवारों पर उकेरे के कलाकृति अद्बूत है। जो इसे दूसरे मंदिरों से अलग बनाती है । मंदिर का निर्माण फणी नागवंशी राजा गोपालदेव के शासन काल में हुआ था । इस मंदिर के तीन द्वार है,पूर्व, उत्तर व दक्षिण दिशा में । मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ है । जिसका निर्माण बेहद खुबसूरत है,मंदिर के हर हिस्से में कलाकारी की गई है । मंदिर में शिवलिंग पांच फिट नीचे गहराई में स्थापित है। इसे छह माह की रात में बनाने की बातें कही जाती है ।
0
छग का खजुराहो के नाम से प्रसिद्व कवर्धा के भोरमदेव शिव मंदिर क्षेत्र में पर्यटन को लेकर अपार संभवावनाएं है। यहां सालभर श्रद्वालु,पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है । खासकर विदेशी पर्यटक भी यहां पहुंचते हैं । जो यहां की सुंदरता के कायल हो जाते हैं । जो एक बार इस क्षेत्र में आ जाता है । वह बार बार आना चाहता है,यहां की भव्यता,प्रकृति का उपहार है,भोरमदेव की पावन धरा । साल में यहां भोरमदेव महोत्सव,महाशिवरात्रि व पूरे सावन माह में विशेष आयोजन होते हैं । जिसमें बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं । भोरमदेव की ख्याति दूर दूर तक है । यहां काफी विकास के कार्य हुए हैं । लेकिन ध्यान दें तो और बेहतर किया जा सकता है । रूकने खाने के लिए सही होटल नहीं है । इस पर कलेक्टर ने कहा है कि भोरमदेव क्षेत्र में पर्यटन के हिसाब से जो भी अच्छा किया जा सकता है । प्रशासन की ओर से करने की कोशिश होगी । एक विस्तृत कार्ययोजना तैयार किया जाएगा।
0
जिले में स्थित ऐतेहासिक भोरमदेव शिव मंदिर लोगों केलिए आस्था का प्रमुख केन्द्र है । यहां भगवान भोलेनाथ सभी भक्तों की मुराद पूरी करते है। दूर दूर से श्रद्वालु यहां आते है,मनचाहा आशिर्वाद मांगते हैं,जो पूरी होती है । भोरमदेव शिव मंदिर के ठीक बाजू में बुढ़ा महादेव है। जिसकी विशेष पूजा करने पर नि:संतान दंपत्ति को संतान प्राप्ति होती है । ऐसे कई श्रद्वालु है,जिनकी ईच्छा भोलेनाथ ने पूरी की है । मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यहां नि:संतान लोगों के लिए पूजा किया जाता है । जिसकी फल उन्हें जरूर मिलता है । भगवान भोलेनाथ की कृपा सब पर होती है । इसके अलावा मंदिर से लगा बजरंगबली की दुर्लभ प्रतिमा है । जिनके हाथ में शिवलिंग है,ऐसी प्रतिमा कहीं और देखने को नहीं मिलती है । भोरमदेव में भगवान भोलेनाथ साक्षात विराजीत है। प्रकृति की गोद में बसा भोलेनाथ बाबा का धाम सभी भक्तों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है ।
0
छत्तीसगढ़ का खजुराहो’, लेकिन खजुराहो से भी पुराना:भगवान शिव को समर्पित है भोरमदेव मंदिर……
छत्तीसगढ़ का खजुराहो यानी कवर्धा में स्थित भोरमदेव मंदिर। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर पुरातत्व की बेमिसाल धरोहर होने के साथ ही आस्था का बहुत बड़ा केंद्र हैं। खास बात यह है कि जिस कृतियों के चलते इसे छत्तीसगढ़ के खजुराहो की संज्ञा दी गई, यह मंदिर उससे भी पुराना है। मध्य प्रदेश स्थित खजुराहो के मंदिर जहां 10वीं सदी के बताए जाते हैं, वहीं इसका निर्माण समय 7वीं शताब्दी का है। इस मंदिर से जुड़े कुछ तथ्य ऐसे भी हैं, जिन पर लोक चर्चा कुछ और है, पर पुरातत्वविदों का सच कुछ और।
कवर्धा से करीब 16 किमी दूर मैकल पर्वत समूह से घिरा यह मंदिर करीब हजार साल पुराना है। इस मंदिर की बनावट खजुराहो और कोणार्क के मंदिर के समान है। यहां मुख्य मंदिर की बाहरी दीवारों पर मिथुन मूर्तियां बनी हुई हैं। यहां के एक और मंदिर है, जिसे मड़वा महल कहा जाता था। वहां पर भी इसी तरह की प्रतिमाएं दीवारों पर बनाई गई थी। अब इसका पुराना स्ट्रक्चर तकरीबन ध्वस्त हो चुका है। मंदिर को फिर 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था।
प्राचीन मान्यता और किवदंती की……..
इस संबंध में एक किंवदंती भी प्रचलित है कि इसके निर्माता राजा ने शिल्पियों को इसे एक ही रात्रि में पूर्ण करने का आदेश दिया था। मान्यता है कि उस समय 6 महीने का दिन और 6 महीने की रात होती थी। 6 माह पूर्ण होते-होते प्रात:काल सूर्योदय तक इसके शिखर में कलश चढ़ाना शेष रह गया था, इसलिए शिल्पियों ने उसे अधूरा ही छोड़ दिया। अब भोरमदेव मंदिर में शिखर के हिस्से पर कलश नहीं है, वह स्थान सपाट है।
मंदिर करीब एक हजार साल पुराना है। बनावट खजुराहो-कोणार्क मंदिर जैसी है।
मंदिर के स्ट्रक्चर की………
ऐसा कहा जाता है कि गोड राजाओं के देवता भोरमदेव थे और वे भगवान शिव के उपासक थे। शिवजी का ही एक नाम भोरमदेव है। इसके कारण मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा। नागर शैली में बना हुआ मंदिर पांच फीट ऊंचे चबूतरे पर स्थित है। मंडप की लंबाई 60 फीट और चौड़ाई 40 फीट है। मंडप के बीच में 4 खंबे है और किनारे की ओर 12 खंबे हैं। मंडप में लक्ष्मी, विष्णु और गरूड़ की मूर्ति रखी है। गर्भगृह में पंचमुखी नाग की मूर्ति, नृत्य करते गणेश जी और मंदिर के चारों ओर बाहरी दीवारों पर भगवान विष्णु, शिव, चामुंडा की मूर्तियां लगी हैं।
0
पांच फीट ऊंचे चबूतरे पर मंदिर बना है। मंडप की लंबाई 60, चौड़ाई 40 फीट है।
उस कलश को मांडवपति ने तोड़ा और रतनपुर के महाराजा बाहुराय 16वीं शती ई. में विजय के प्रतीक के रूप में अपने साथ ले गए। मांडवपति रतनपुर के महाराजा बाहुराय के सहयोगी थे। वे अपने साथ संगमेश्वर का स्तंभ भी विजय स्वरूप ले गए थे। वह यह भी बताते हैं कि मंदिर के शिखर केंद्र बिंदु के ठीक नीचे प्रतिमा स्थापित होती है। शिखर और मूर्ति का केंद्र एक ही होने से निरंतर ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है। जब हम मूर्ति के आगे सिर झुकाते हैं तो हमारे अंदर भी वह सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है। शिखर का ऊंचा बनाने का कारण यही है कि मंदिर के ऊपर से भी कोई प्रतिमा को लांघ न सके। यही भोरमदेव के शिखर का रहस्य है।
0
तीन ओर पहाडिय़ों और घने जंगल के बीच स्थित भोरमदेव मंदिर आज भी अपनी सुंदरता के लिए विख्यात है। इसकी अविस्मणीय कलाकृति को देखने के लिए अन्य राज्यों के अलावा विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं।
भोरमदेव मंदिर की संरचना पंचरथ प्रलबों से हुई है। शिखर ग्रीवा द्वारा विभक्त है। भोरमदेव का मंदिर उत्तर भारत के मध्ययुगीन मंदिरों की विशेषता है। बाहृय भाग में प्रबंल उभरे हुए छज्जे हित मुखमंडप तथा पिरामिड आकार के शिखर आदि है। इसके उत्तर भाग में भैरव सहित कई मूर्तियां है। दक्षिण भाग में हनुमानजी, गणेशजी की मूर्तियुक्त चबूतरा है। पूर्व से पश्चिम 250 फीट, उत्तर से दक्षिण 150 फीट, भित्ती की ऊंचाई 11 फीट है। यह मंदिर खजुराहो के समकक्ष है। मंदिर पूर्व से पश्चिम 60 फीट की धुरी पर निर्मित है। मध्य रेखा के दोनों ओर अर्धमण्डप है। मंदिर की चौड़ाई 40 मीटर है और ऊंचाई भूमितल से लगभग 100 फीट है। मंदिर के तीन दिशाओं के अंदर अर्धमंडप है। पूर्वाभिमुख, उत्तराभिमुख और दक्षिणाभिमुख। इन तीन मंडपों में प्रवेश द्वार है इन मुखों से मंदिर में प्रवेश किया जा सकता है।
0
भोरमदेव मंदिर पूर्वाभिमुख है। इसकी लंबाई 18.13मीटर, चौड़ाई 12.20 मीटर है। मुख द्वार पूर्व की ओर, दक्षिण की ओर भी एक द्वार है। मंदिर के बाहरी दीवारों पर विभिन्न अवतार से अलंकरण युक्त है। शिव, हनुमान, कंकाली, चामुंडा, गणेश, सरस्वती, नटराज की प्रमिाएं हैं। खजुराहों और कोणार्क के सूर्यमंदिर के शैली में 3 पंक्तियों में सामाजिक एवं गृहस्थ जीवन से संबंधित रति क्रिया का कलात्मक दृश्य उकेरा गया है। इसमें भूरे तथा काले पत्थरों का उपयोग किया गया है। मंदिर के ऊपर में पुष्प और बाज बनाया गया है। अष्टभुजी गणेश की नृत्य शैली प्रतिमा, शिव की अतुर्भुजीय प्रतिमा, षठभुजी हरिहर की प्रतिमा, शिव के अर्थनारीश्वर प्रतिमा सुंदर मनोहारी है। नृत्यकरती अप्सराएं दर्शकों का मन मोह लेती है। संगीत के तीन अंग भाव, गायन व वादन के माध्यम से इन चित्रों को उकेरा गया है। मंजीरा, मृदंग, ढोल, शहनाई, बांसुरी एवं वीणा बजाते हुए चित्रों को देखकर मन आत्मविभोर हो जाता है। भोरमदेव मंदिर के सामने तालाब, दाएं तरफ फूलों से भरा उद्यान, हरे भरे वृक्ष बरबस ही लोगों में हर्ष आनंद भर देता है।
0000000000000